हल्बा समाज का इतिहास

दो सदी पूर्व तक हमारा हल्बा समाज सुगठित और निवासी वर्ग में कुशल कृषक, शूरवीर, दृढ प्रतिज्ञ, सहज सरल पर अपनी आन के लिए आत्मोसर्ग करने पर तत्पर होने वाली जाति के रुप में विलक्षण पहचान रखता था | समय के थपेडों ने, पराधीनता की बेडियों ने तथा फिरंगियों ने हमारे पुर्वजों का क्रूरता पुर्वक इतना दमन किया कि तात्कालिन मध्य प्रान्त के अधिकांश क्षेत्रों (दुर्ग, रायपुर, बस्तर, राजनांदगांव, चांदा, भंडारा, नागपुर, वर्धा, यवतमाल, बुल्ढाना, अमरावती तथा उडीसा) में निवासरत है।
गौरवशाली अतीत के धनी, दमन चक्र की पीडा सहते, विभिन्न स्थानों में इस प्रकार बिखर गये कि अपनी पहचान के लिए मोहताज हो गये थे शोषित और प्रताड़ित हल्बा कहीं-कहीं इतना सहमें हुए थे कि अपनी विलक्षण जातिय स्वरुप को बतलाने में संकोच करने लगते थे हमारी पिछड़ी पीढ़ी के सम्मानीय बुजुर्गों ने यत्र-तत्र बिखरे हुए बिरादरी के लोगो को ढुढना पहचान करने और एक धागे में पिरोने का सतत प्रयास किया |